गरीब के जीने मरने की चिंता,
भला आजकल कौन करता है,
ऐसे अचानक लॉकडॉन की घोषणा से,
सबसे पहले गरीब ही तो मरता है।
ऐसी परेशानी के पलों में,
मृत्यु की चिंता किसे होती है,
हमारी सरकार से अपील तो बस,
पेट भरने के लिए २ वक़्त की रोटी है।
कुछ लोग इलाके में आये थे कल,
देख शायद हमारी दुविधा को,
जब कैमरा दिखे, तब एहसास हुआ,
वो आये थे अपनी सुविधा को।
आये फिर वो अस्थायी झोपड़े में हमारे,
थैलियों में लेकर बिस्कुट, रोटी और दाल,
एक आस उठी मन में,
शायद ये पूछएंगे हम गरीबों का हाल।
शर्मनाक मंज़र चलता रहा,
दुख से मैंने आँख मीच ली,
मजबूत थी उनकी पकड़- छूटी न थैली,
जब तक १० फोटो उन्होंने न खीच ली।
Decided to pen down these few lines to address the way many self sufficient people showcase their contribution towards the poor & needy just for posting on social media these days.
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